Month: May 2023
स्वभाव
संसार में अलग-अलग स्वभाव की वस्तुएँ हैं। वे स्वभाव नहीं छोड़तीं। हाँ, निमित्त पाकर कुछ समय के लिये विभाव रूप परिणमन कर लेती हैं, जैसे
सार्वजनिकता
आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते हैं… “जो काम पत्र से हो जाय उसके लिये पत्रिका का सहारा क्यों ?” मुनि श्री संधानसागर जी
संक्लेश
संक्लेश परिणामों से बार-बार अपर्याप्तक निगोदिया बनते हैं। उनका ज्ञान जघन्यतम होता है। यानि संक्लेश, अज्ञान के अनुपात में होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
अनेकांत
अनेकांत = सबका स्वागत/ स्वीकार (अपेक्षा सहित) मुनि श्री प्रमाणसागर जी
उपादान / पुण्य
समयसार जी में 3 गाथाओं में सोना बनाने की विधि बतायी है, उपादान का महत्व बताने के लिए। अंत में कह दिया… यदि पुण्य हो
विनम्रता
पंछियों को ऊपर उठने के लिये पंखों की ज़रूरत होती है; मनुष्य को विनम्रता की, जितनी-जितनी विनम्रता बढ़ेगी, उतना-उतना वह ऊपर उठेगा। (एन.सी.जैन)
तांडव-नृत्य
भगवान के जन्मोत्सव में इन्द्र के द्वारा तांडवनृत्य विकराल नहीं होता बल्कि देखने वालों का रोम-रोम नृत्य करने लगता है, इस अपेक्षा से तांडव कहा
आध्यात्म
जिसे मरण से भीति नहीं, जन्म से प्रीति नहीं, वही आध्यात्म को पा सकता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
धर्म / पुण्य
पुण्य करने वालों के जीवन में धर्म हो भी या ना भी हो, परन्तु धर्म करने वाले को पुण्य मिलेगा ही। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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