संक्लेश
संक्लेश परिणामों से बार-बार अपर्याप्तक निगोदिया बनते हैं।
उनका ज्ञान जघन्यतम होता है।
यानि संक्लेश, अज्ञान के अनुपात में होता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड-गाथा- 321)
संक्लेश परिणामों से बार-बार अपर्याप्तक निगोदिया बनते हैं।
उनका ज्ञान जघन्यतम होता है।
यानि संक्लेश, अज्ञान के अनुपात में होता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड-गाथा- 321)
One Response
मुनि श्री प्रणम्य सागर महाराज जी का संक्लेश की परिभाषा दी गई है वह पूर्ण सत्य है! संक्लेश जीवन का कल्याण नहीं कर सकता है!