Month: August 2023
पंचम काल में भाव
पंचम काल में औदयिक भाव (गति, कषाय, शरीर नाम कर्म आदि) सबसे ज्यादा होते हैं। दूसरे स्थान पर क्षयोपशमिक भाव(ज्ञान, दर्शन)। पारिणामिक तो हमेशा बना
संगति / पुरुषार्थ
कुसंगति के प्रभाव से बचे रहने के लिये बहुत पुरुषार्थ करना होता है। लेकिन सुसंगति के बावजूद व्यक्ति बिगड़ जाए तो पुरुषार्थहीन ही कहलायेगा। ऐसे
देवों के श्रुतज्ञान
देवों के पूर्ण श्रुतज्ञान (द्रव्य) हो सकता है। पर भाव श्रुतज्ञान नहीं होता। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी यदि भावश्रुत भी होता तो वे श्रुतकेवली
भिखारी
भिखारी वह जो इच्छा रखता हो/ जिसकी इच्छा पूरी न हुई हो। आदर्श भिखारी…. शांति की इच्छा रखने वाला, शांति मिल जाने पर इस इच्छा
अभव्य / अभव्य समान भव्य
अभव्य…. एक इन्द्रिय से पाँच इन्द्रिय तक। अभव्य समान भव्य…. एक इन्द्रिय ही। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थसूत्र- 2/19)
मजबूरी / पुरुषार्थ
मजबूरी में Accept भी करना होता है। Adjust करने के लिए पुरुषार्थ ही। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
विभाव / अशुद्ध भाव
विभाव….पर के निमित्त से। अशुद्ध भाव….स्वयं के कर्मों से। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
Ideal Acts
Make a mind which never minds. Make a heart which never hurts. Make a touch which never pains. Make a relation which never ends. (J.L.Jain)
बंधन / संघात
बंधन….बूंदी के लड्डू को हलके हाथ से बांधना। संघात….बूंदी के लड्डू को कसके बांधना। आचार्य श्री विद्यासागर जी
संगति
पानी अग्नि के सम्पर्क से गर्म तो हो जाता है, पर स्वाद आदि गुण नहीं बदलते हैं। जुआरी की संगति से युधिष्ठर जुए में सब
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