Month: August 2023
व्रत
व्रत में उपवासादि तप है तथा पूजा/ विधान भक्ति, बाह्य रूप है। ध्यान/ सामायिक/ चिंतन अंतरंग रूप है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
शांति
शांति का हमको अनुभव नहीं/ जानते नहीं, इसीलिये कम अशांति को हम शांति और ज्यादा अशांति को अशांति मानते/ जानते हैं। शांतिपथ प्रदर्शक
पुरुषार्थ
पुरुषार्थ = पुरुष का इच्छापूर्वक कार्य, चेतनात्मक। पुरुषार्थ जड़ में भी होता है, जैसे भाप के निकलने का प्रयास, जड़ात्मक। क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
द्रव्य-इंद्रिय
स्पर्शन → अनेक प्रकार वाली (1 इंद्रिय से 5 तक)। रसना → खुरपा की Shape, जिव्हा बाह्य उपकरण। घ्राण → अतिमुक्ता पुष्प (तिल का फूल)।
धर्म
धर्म को कैसे पहचानें/ जानें ? जैसे आत्मा को पहचानते/ जानते हैं – शरीर के माध्यम से। ऐसे ही धर्म को धार्मिक क्रियाओं के माध्यम
कषाय / अधर्म
जैसे कषायें अपना प्रभाव योगों के माध्यम से देतीं हैं (लेश्या बनकर), ऐसे ही अधर्म का प्रभाव/ पहचान क्रियाओं के माध्यम से होती है। चिंतन
अवतारवाद
अवतारवाद → ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर। उत्तीर्णवाद → नीचे से ऊपर ही (मनुष्य से भगवान, बनने की प्रक्रिया जैसा जैन-दर्शन में) निर्यापक
प्रतिक्रमण
प्रति = स्वयं, क्रमण = क्रम में लौटना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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