Month: September 2023
अक्षर भेद
लब्ध-अक्षर – अक्षर को समझने की लब्धि/ योग्यता (कर्म के क्षयोपशम से) इसे ही भाव-इंद्रिय कहा (त.सू. – लब्धयोपयोगो भावेन्द्रियम्)। लब्ध-अक्षर क्षेत्र → पर्याय ज्ञान
तेज़ गति
वाहन जितनी तेज़ी से चलेगा, धूल भी उतनी तेज़ी से/ ज्यादा उड़ेगी। धूल में दिशा-भ्रम भी हो जाता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
ब्रह्मचर्य
अनादि काल से इंद्रियों/ मन में उलझे हैं; क्रोध ने अंधा, मान ने बहरा, मायाचारी ने अविश्वासी, लोभ ने बेशर्म बना दिया है। पर से
उत्तम ब्रह्मचर्य/ क्षमावाणी
संयम फूल है, ब्रह्मचर्य फल। आजकल ब्रह्मचारी तो भ्रम है, आदर्श देखना है ब्रह्मचारी नीलेश भैया को देखें। क्षमा मांगनी है तो अपनी वासना से
उत्तम ब्रह्मचर्य-धर्म
ब्रह्म भाव निज भाव है, देह भाव भव भाव। निज में ही जो नित रमें, ब्रह्मचर्य सुख छाँव। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी
उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म
मेरे काॅलिज के समय मेरी बुआ जी ने ब्रह्मचर्य व्रत लिया था। ब्रह्मचर्य क्या होता है ? समझाने बुआजी ने एक ओर मुझे बैठाया दुसरी
उत्तम आकिंचन्य -धर्म
मुनिराजों को भय नहीं होता क्योंकि भय तो परिग्रह तथा परिजनों के कारण होता है, जिनका पूर्ण त्याग होता है। इसलिए उनके आकिंचन्य धर्म की
उत्तम आकिंचन्य धर्म
आकिंचन्य यानी किंचित भी मेरा नहीं। सत्य को सत्य स्वीकारना। इसमें कुछ करना नहीं है। राग द्वेष से मुक्ति का नाम आकिंचन्य है। ———————————————– ज्यों
उत्तम त्याग-धर्म
उत्तम त्याग, अनुत्तम(विभावों) का, ग्रहण उत्तम(स्वभाव) का। अपाय(उपाय) विचय का अर्थ एक आचार्य ने त्याग(बुराई का) बताया है। ———————————————– लब्धि में जितना भोग/ धन है,
उत्तम त्याग धर्म
त्याग पूर्ण का, साधुओं के द्वारा। दान आंशिक, गृहस्थों द्वारा। क्योंकि उनसे घर के कामों में हिंसा/ पाप हो ही जाती है। उसके प्रक्षालन के
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