Day: January 9, 2024

सिद्धों में भोगादि

भोग → प्रति समय आत्मा में ज्ञान/ चैतन्य भाव। उपभोग → वही रस बार-बार समयों में भोगना। जैसे अनार रस पहले घूँट में भोग, बार-बार

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संयास

दर्पण कभी न रोया हो न हंसा ऐसा संयास। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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मंगल आशीष

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January 9, 2024