Month: February 2024
शरीरों की सूक्ष्मता
औदारिक से कार्मण तक सूक्ष्मता अधिक-अधिक होती जाती है। सूक्ष्मता दो दृष्टि से – 1.स्थूलता में कमी 2.दृष्टिगोचर न होना वैक्रियक शरीर देव दिखाना चाहें
निधि
आत्मा की सबसे बड़ी निधियाँ हैं – स्वाधीनता, सरलता और समता भाव। इन्हें अपन को ग्रहण करना है, Develop करना है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
तैजस काय योग ?
तैजस काय योग नहीं होता है जैसे औदारिक/ वैक्रियक/ आहारक/ तीन मिश्र काय योग होते हैं। क्योंकि तैजस शरीर की वर्गणाओं से आत्मा में परिस्पंदन
भेदविज्ञान
यदि चावल और कंकड़ में भेद नहीं किया तो दांत टूट जायेंगे। (हित/ अहित, शरीर/ आत्मा में भेद नहीं किया तो जीवन टूट जायेगा) आचार्य
बारह भावना
लोकांतिक देव बारह भावना भाकर ही बने, आज भी भाते हैं। तीर्थंकर जब बारह भावना भाकर गृहत्याग करते हैं, तब आकर अनुमोदना करते हैं। आचार्य
सहन शक्ति
एक बार परम पूज्य मुनि गुरुवर श्री क्षमासागर महाराज जी की अस्वस्थ अवस्था में किसी ने पूछा कि आप इतनी वेदना कैसे सहन कर लेते
नय
1. निश्चय नय → कर्म/ संसार/ आस्रव तथा मोक्ष को भी नहीं स्वीकारता। सिर्फ शुद्ध स्वरूप को मानता है। गंतव्य/ लक्ष्य/ मंज़िल पर दृष्टि रखता
जिनवाणी
जिनवाणी माँ हमें समझा रही है कि कब तक चारों गतियों में जन्म मरण करते रहोगे ? अन्य पदार्थों की चाह में यह भ्रमण अनंत
उपभोग
सामान्य परिभाषा – बार बार भोगना। आध्यात्मिक परिभाषा – हर इन्द्रिय सम्बन्धित जैसे मोबाइल को बार-बार देखना/ सुनना। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थसूत्र- 2/53)
धैर्य
उत्साह बढ़े उत्सुकता घटे सो महान धैर्य आचार्य श्री विद्यासागर जी
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