Month: February 2024
सिद्धों में इन्द्रिय-ज्ञान ?
स्पर्श, रसादि सिद्धों तक पहुँचते तो नहीं हैं पर उनको सब इन्द्रिय-ज्ञानों का ज्ञान होता है। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी (जिज्ञासा समाधान- 29.4.22)
सन्मार्ग
मोक्षमार्ग में मन व इंद्रियाँ काम नहीं करतीं, उनका निग्रह* काम करता है। *नियंत्रण / सीमांकन आचार्य श्री विद्यासागर जी
स्वर्ग में लेश्या तथा गमन
दूसरे स्वर्ग की देवियाँ जो १६वें स्वर्ग में जातीं है उनकी लेश्या शुक्ल ही होती है। लेकिन एक स्वर्ग से ऊपर के स्वर्गों में कोई
परेशान
परेशान = पर + ईशान। ईशान(संस्कृत) = मालकियत। परेशान तब जब “पर” के ऊपर मालकियत के भाव हों। क्षुल्लक श्री सहजानंद वर्णी जी
मरणांतिक समुद्घात
इसमें आत्मप्रदेश जन्मस्थान जाकर आ जाते हैं। स्थान देखना नहीं कह सकते क्योंकि आंखें तो जातीं नहीं हैं। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी (शंका समाधान)
दायित्व / कर्तव्य
दायित्व सौंपा जाता है, कर्तव्य निभाया जाता है, जैसे माता पिता बच्चों के प्रति। दायित्व को निभाना कर्तव्य होता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
क्षयोपशम सम्यग्दर्शन
जब क्षयोपशम सम्यग्दर्शन, सम्यक् प्रकृति के उदय से होता है तो इसके भाव को औदयिक-भाव क्यों नहीं कहा ? सम्यक् प्रकृति का उदय मुख्य कार्य/
दादागिरी
दादा बने हो दादागिरी न करो दायरे में रहो आचार्य श्री विद्यासागर जी
सम्मेद शिखर वंदना
सम्मेद शिखर वंदना पुण्योदय से नहीं, पुण्य फल के त्याग से होती है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मन, दिल, दिमाग
मन –> संस्कारानुसार काम करता है, दिल –> रागादि से, दिमाग –> बाहरी Information से। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी
Recent Comments