Month: February 2024
क्षुधा रोग विनाशनाय
क्षुधा रोग विनाशनाय का अर्घ चढ़ाते समय “भूख समाप्त हो”, ऐसा ही नहीं, “पर” द्रव्यों के प्रति आसक्ति/ मूर्छा का विनाश हो, ऐसे भाव भी
“पर” से दुःख
डाक्टरों ने एक Experiment किया –> एक महिला के दोनों हाथ मेज पर रखवाये, बीच में Partition खड़ा कर दिया। बायें हाथ के पास एक
अज्ञान
1. जब तक पूरा ज्ञान (केवलज्ञान) प्रकट न हो जाय, यानी 1 से 12 गुणस्थानों में अज्ञान/ औदयिक भाव रहेगा। यह सम्यग्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि दोनों
ध्यान
अंतराय होने पर श्रावक रोने लगा। आचार्य श्री विद्यासागर जी… यह आर्तध्यान नहीं धर्मध्यान है।
प्रमाणिकता
अनुभव/ इंद्रियों पर आधारित प्रमाणिकता गलत भी हो सकती है जैसे पीलिया वाले के रंगों का अनुभव। गुरु/ शास्त्र पर आधारित ज्ञान प्रमाणिक होता है।
अचेतन का उत्थान
चेतन के उत्थान में अचेतन के उत्थान की महत्वपूर्ण भूमिका है। तभी तीर्थक्षेत्रों/ मन्दिरों के जीर्णोद्धार करवाये जाते हैं तथा नये बनाये जाते हैं। ऐलक
कठिन ज्ञान
जो विषय कठिन हो, समझ में न आये; उसे जानने के प्रयास से पुरुषार्थ और ज्ञान में वृद्धि होती है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
गुप्ति
आचार्यों के लिये गुप्ति मूलगुण है। साधुओं के लिये ध्यान की सिद्धि में सहायक। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
दान
माताजी से प्रश्न → बड़े-बड़े लोग बड़े-बड़े दान करते हैं, हमें अनुमोदना करनी चाहिये या नहीं? (क्योंकि अधिक धन तो अधिक दोष सहित आता है)
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