Month: February 2024
प्रश्न / समाधान
समाधान से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रश्न होता है। इससे संवेग-भाव बना रहता है जो मोक्षमार्ग में सहायक होता है। प्रश्न से ही तो गौतम गणधर का
शरीर / आत्मा
यदि शरीर को ज्यादा महत्व दिया तो आत्मा Neglect हो जाती है जैसे एक बेटे को ज़रूरत से ज्यादा महत्व देने पर दूसरा बेटा Neglected
प्रायश्चित
मुनि श्री शांतिसागर जी, आचार्य श्री विद्यासागर जी से प्रायश्चित अकेले में नहीं लेते थे। उनकी सोच थी कि गलती जितने लोगों के सामने की
Give & Take
“2get” and 2give” creates many problems. So, just double it .. “4get” and “4give” solves many problems. (J.L.Jain)
संवेग
संवेग संसार से भयभीत होना। संवेग धर्म को ग्रहण करने की पात्रता देता है। संवेग के अभाव में पाप भी उतनी ही Intensity से किये
सम्पर्क
लोहा अग्नि के सम्पर्क में अग्नि जैसा, लेकिन लोहा अग्नि नहीं। “पर” के निमित्त से “मैं” अशांत लेकिन अशांत मेरा स्वभाव नहीं। शांतिपथप्रदर्शक
अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग
केवलज्ञान में सब पदार्थ आ जाते हैं, इसलिये ज्ञान ही श्रेष्ठ है। ज्ञान के आश्रय से कलुषता/ कषाय कम करने वाला अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी होता है।
अच्छे कार्य
अंतराय अच्छे कार्य में ही आते हैं। (तो अंतराय आने पर घबरायें नहीं, मानें आपके निमित्त से कुछ अच्छा कार्य हो रहा है) आचार्य श्री
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