Month: May 2024
तीर्थंकर मुनि के आहार
तीर्थंकर मुनि अधिक से अधिक 6 माह के उपवास का नियम लेते हैं जैसे आदिनाथ भगवान ने लिया था। आहार, श्रावकों को सिखाने के लिये
सुख / दु:ख
सुख भी पीड़ा/ दुःख/ तृष्णा देता है। लगातार मिलने पर Bore होने लगते हैं, न मिलने पर दुःखी। सो सुख दुःख बराबर हुए न !
सम्यग्दर्शन
सम्यग्दर्शन के लिये → 1. सगारो यानी साकार उपयोग (जो साकार को ग्रहण करे = ज्ञानोपयोग)। 2. जागरुक (5 निद्राओं में निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धि अजागरुक)।
लब्धियां
क्षयोपशम लब्धि – कमों की अनुभाग शक्ति घटने लगती है। विशुद्ध लब्धि – क्षयोपशम बढ़ाने से। देशना लब्धि – विशुद्ध भावों से देशना ग्रहण करना।
नेतृत्व
आप धर्म/ स्वाध्याय कराते हो तो कर लेते हैं। आप इंजन, हम डिब्बे हैं। सुभाष-नया बाजार मंदिर हरेक में इंजन बनने की क्षमता है। बस
सम्यग्दर्शन
सम्यग्दर्शन 5 लब्धियों से होता है। करणानुयोग की अपेक्षा → 7 कर्म प्रकृतियों के क्षय/ क्षयोपशम/ उपशम से। चरणानुयोग की अपेक्षा → अच्छे/ सच्चे आचरण
भेंटादि
दान/ भेंटादि में ‘एक’ अधिक (जैसे 11,101) क्यों देते हैं ? आचार्य श्री विद्यासागर जी → तब यह संख्या अविभाज्य हो जाती है। ‘एक’ का
प्रमाद
तीर्थंकरों में प्रमाद कैसे समझें, उनके तो वर्धमान चारित्र होता है? तीर्थंकर आहार के लिये जब उठते हैं तब छठवाँ गुणस्थान होता है, यानी प्रमत्त
मन / आत्मा
आत्मा तो हमेशा जानती है कि सही क्या/ गलत क्या है। मनुष्य के सामने चुनौती तो मन को समझाने की होती है। (सुरेश)
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