Month: April 2024

करण और भाव

तीन करण… मिथ्यादृष्टि के भी होते हैं जब वह सम्यग्दर्शन के सम्मुख खड़ा होता है। तब औदयिक भाव होते हैं। श्रेणी मांडते समय आदि पाँच

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दान

“दान” शब्द का प्रयोग तो बहुत जगह होता है जैसे तुलादान, पर वह दान की श्रेणी में नहीं आयेगा। ऐसे ही रक्तदान यह सहयोग/ करुणा

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धर्म / अधर्म

वस्तु का स्वभाव ही धर्म है वस्तु अनादि से है, सो धर्म भी अनादि से हुआ। लेकिन ये अधर्म कब और कहाँ से आ गया

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धर्म

धर्म अंदर से भरता है। प्राय: यह भ्रम रहता है कि बाहर से भरता है इसीलिये धर्म पर से विश्वास घट रहा है। धर्म (सार्वभौमिक

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वेग / संवेग

वेग की तीव्रता/ आक्रोश = आवेग काम करने की ज्यादा उत्सुकता = उत्सेग मद सहित उत्सेग = उद्वेग वेग रहित अवस्था = निर्वेग निर्वेगी (चिंता/

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निमित्त / नियति

निमित्त तथा नियति को एक समय में एक को ही महत्व देने का मतलब उसकी अधीनता स्वीकार करना। लेकिन दोनों तथा अन्य कारणों (पाँचों संवाय

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समाधि-मरण

शरीर छूटने पर व्रत छूट जाते हैं पर व्रती व्रत छोड़ता नहीं/ छोड़ना चाहता नहीं। इसे ही समाधि-मरण कहते हैं। वही संस्कार अगले भव में

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तिलक

तिलक लगाने की परम्परा क्यों ? आचार्य श्री विद्यासागर जी… ठंडी में केसर (गरम होती है) का, गर्मियों में चंदन में कपूर मिलाकर लगाने से

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गुरु आज्ञा

मुनि श्री प्रवचनसागर जी को गुरु आज्ञा मिली… अमुक मुनिराज की वैयावृत्ति करने की। रास्ते में पागल कुत्ते ने काट लिया। इंजेक्शन लगवाने की आचार्य

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कर्तृत्व

कर्ता, भोक्ता, स्वामित्व भावों को कर्तृत्व भाव कहते हैं। पर इनसे अहम् आने की सम्भावना रहती। ये भाव संसार तथा परमार्थ दोनों में आते हैं।

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मंगल आशीष

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April 30, 2024