Month: August 2024
भोगी वर्गणाओं का ग्रहण
एक ब्रह्मचारी मानसिक विकलांगों की संस्था में भोजन कराने गये। कुछ बच्चों ने अति ग्रहण करके वमन कर दिया। एक तो थाली से वमन के
शरीर
शरीर …. कर्म शिल्पकार की रचना है। मिट्टी की इमारत कब ढल जाए पता नहीं, फिर गुमान क्यों ? ये चंद साँसों के पिल्लर पर
धर्म के लिए समय
धर्म के लिए समय निकालने/ न निकालने की बात ही क्यों उठती है ! सम्यक् श्रद्धा का अंदर बना रहना ही धर्म है। हाँ! गलत
श्रद्धा
आचार्य श्री कुंदकुंद कहते हैं…. चारित्र से गिरे तो भ्रष्ट, लेकिन सच्ची श्रद्धा से गिरे तो महाभ्रष्ट। श्रद्धा (सच्ची) सिद्ध बनने की कच्ची सामग्री है।
आकुल / व्याकुल
आकुल अच्छे कामों में व्यवधान से, व्याकुल बुरे कामों में व्यवधान से। मुनि श्री मंगल सागर जी
पुरुषार्थ
समवसरण में सीढियां चढ़नी नहीं पड़तीं; सब कुछ देवकृत/ स्वचालित। लेकिन पहली सीढ़ी तक जाने का पुरुषार्थ तो करना ही होगा, बाह्य परकोटे के नृत्यादि
बाजरा
बलिहारी गुरु बाजरा, तेरी लम्बी पान*। घोड़े को तो पर लगे, बूढ़े हुए जवान। * हाथ/ शक्ति आचार्य श्री विद्यासागर जी (मोटा अनाज खाने की
जीव का स्वभाव
कहा है कि जीव का स्वभाव ऊर्ध्वगमन का होता है, पर हर स्थिति में संभव नहीं हो सकता है। इसलिये इसे सिर्फ़ स्वभाव की अपेक्षा
समय
स्व-समय(आत्मा) में लीन रहने वालों का समय(काल) उनका अपना हो जाता है, समय पर मालकियत हो जाती है। आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (31 जुलाई)
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