Month: September 2024
नित्य / अवस्थित
नित्य Quality का विषय, अवस्थित Quantity का विषय। आचार्य अकलंक स्वामी ने कहा… नित्यावस्थित यानी हमेशा वैसा बना रहना (पर्याय परिवर्तन तो होगा) जैसे किसी
चैंपियन
कैरम के खेल में चैंपियन वह नहीं बनता जिसका निशाना बहुत अच्छा हो। बल्कि वह बनता है जो अपनी अगली गोटी बनाना तथा दुश्मन की
अभ्यास
कराटे में 1000 actions खतरनाक नहीं, वह एक खतरनाक होता है जिसका अभ्यास 1000 बार किया गया हो। जैसे भरत चक्रवती गृहस्थ जीवन में लगातार
धर्म से दूरी
WHO के अनुसार कोविड के पहले भी मानसिक अस्वस्थता 14% लोगों में पायी जाती थी। धार्मिक लोगों में यह Rare होती है। कारण ? धर्म
लोक
जैन दर्शन में लोक, जीव तथा अजीव से मिलकर बना है (जीवमजीवं दव्वं – द्रव्य संग्रह)। विज्ञान भी यही मानता है बस नाम देता है
सफलता
विधि, विधि और विधि से सफलता मिलती है यानी भाग्य, तरीका और पुरुषार्थ से। मुनि श्री मंगलानंदसागर जी
सल्लेखना
योद्धा दुश्मन को जीतने के लिये तन, मन, वचन सब लगाकर जीत तो लेता है पर उसका इहभव और परभव द्वेषपूर्ण होते हैं। क्षपक सब
पुरुषार्थ
जीवन बहुआयामी है सो पुरुषार्थ भी। रचनात्मक जैसे माता पिता का बच्चों के लिये। गैर-रचनात्मक बच्चों का माता पिता के लिये। हमारे पुरुषार्थ में कितने
समय का सदुपयोग
एक सेठ के दो बेटे थे छोटा बेटा समय बर्बाद करता रहता था। बड़ा बेटा कर्म और धर्म में पुरुषार्थ करता था। एक बार छोटे
संस्कार
संस्कार बुरे भी होते हैं। अवगुण बढ़ने को वर्धमान कह सकते हैं पर आत्मकल्याण के परिप्रेक्ष्य में हीयमान ही कहेंगे। मुनि श्री मंगल सागर जी
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