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Month: September 2024

उत्तम तप

इच्छा निरोध/ अपेक्षा निरोध/ पर वस्तुओं को छोड़ने को तप कहते हैं। जैसे-जैसे तप पढ़ेगा इच्छाएं कम होंगी। इच्छा शक्ति अनंत है, पुण्य काफी हो

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जीवाश्च

सूत्र… यानी जीव भी द्रव्य हैं। “च” से जीव रूपी व अरूपी भी। बहुवचन का प्रयोग –> एक जीव नहीं वरना “एको ब्रह्म” हो जायेगा।

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उत्तम संयम

संयम क्या है ?… होश पूर्वक जीना/ जागृत रहना/ बाह्य पदार्थों से अप्रभावित रहना। इसके दो भेद… इंद्रिय निरोध, दूसरा प्राणी संयम। लाभ… विल-पावर बढ़ती

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सापेक्षवाद

द्रव्य वह जो अंतरंग तथा बाह्य निमित्तों के माध्यम से अपने अस्तित्व को बनाये रखे, चाहे वह शुद्ध द्रव्य ही क्यों न हो। परिणमन दूसरे

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उत्तम सत्य

झूठ न बोलना तथा हित, मित, प्रिय बोलना ही सत्य है। जैसे सुंदर/ अच्छे पक्षियों को पिंजरे में बंद कर दिया जाता है और वे

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समय

जो लोग कहते हैं कि समय नहीं है, वे आत्मा के अस्तित्व को नकारते हैं। क्योंकि “समय” तो “आत्मा” को कहते हैं। विद्वत श्री संजीव

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उत्तम शौच

शौच-धर्म यानी लोभ का अभाव। लोभी शिकायतों के साथ पैदा होता है और असंतोष के साथ मरता है। चारों कषाय (क्रोध,मान,माया,लोभ) कुलीन नहीं हैं फिर

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देवों में गति

देवों में पंचेंद्रिय संज्ञी ही जाते हैं। असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्तक –> भवनत्रिक में ही। सम्यग्दृष्टि देवों में ही, पांचवे गुणस्थान वाले 16 स्वर्ग तक। मुनि

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उत्तम आर्जव

आर्जव-धर्म यानी सरलता/ चिंतन कुछ संभाषण कुछ क्रिया कुछ की कुछ होती है। कभी न कभी कपटी के पट खुलते ही हैं जैसे शकुनि मामा।

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कर्म फल

रमेश ने मित्र सुरेश से 2000 रु. उधार लिये। रमेश के मन में बेईमानी आ गयी। सुरेश कर्म-सिद्धांत का विश्वासी, कहता –> लेकर जायेगा नहीं!

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मंगल आशीष

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