Month: October 2024

डर

डर एक में नहीं, अनेक से होता है। विडंबना, हम एक से अनेक होने के लिए भारी पुरुषार्थ करते रहते हैं। आर्यिका पूर्णमति माता जी

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धर्माधर्मयोः कृत्स्ने

धर्माधर्मयोः कृत्स्ने… धर्म अधर्म एक-एक होते हुए भी पूरे लोकाकाश में पूर्ण रूप से व्याप्त हैं, जैसे तिल में तेल। अन्य द्रव्यों का ऐसा नहीं

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अस्तित्व / सहकारिता

सब द्रव्य साथ-साथ रहकर भी अपने-अपने स्वभाव में रहते हैं। एक दूसरे के स्वभाव को छेड़ते नहीं। इसीलिये कहा कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का

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मौन

मौन = म + ऊ + न = मध्य* + ऊर्ध्व (देवलोक) + नरक (लोकों की यात्रा)। आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी *मनुष्य + जानवरों का

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सीमा

डॉक्टर का ऑपरेशन तो सफल हुआ, पर मरीज़ मर गया। हम हर चीज सीमा में चाहते हैं, जैसे बाल, नाखून, कपड़े, पर संपत्ति की कोई

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तत्त्वार्थ सूत्र

तत्त्वार्थ सूत्र पूर्ण रूप से सिद्धांत ग्रंथ नहीं है क्योंकि उसमें दो अध्याय चरणानुयोग के भी हैं। इसलिये इसे अष्टमी चौदस को पढ़ा जा सकता

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हार

जिसने हार पहनने में अपना सम्मान मान लिया मानो उसकी आत्मा हार गई। आर्यिका पूर्णमति माता जी (2 अक्टूबर)

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तीर्थंकर भारत में

तीर्थंकर भारत में ही क्यों ? तीर्थंकर पुण्यात्माओं का कल्याण करने को बनते हैं (अपने कल्याण के साथ-साथ), अवतारवाद से भिन्न, जो पापियों का नाश

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उपादान / निमित्त

जीव तथा पुद्गल अपनी-अपनी उपादान शक्ति से गतिशील/ स्थित रहते हैं। फिर धर्म/ अधर्म का क्या प्रयोजन ? एक कार्य के पीछे अनेक कारण होते

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सात्विकता / व्यवहार

एक व्यक्ति जलेबी की दुकान पर एक किलो जलेबी खा गया। पैसे ? नहीं हैं। मालिक ने पिटाई कर दी। यदि जलेबी इस भाव खाने

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मंगल आशीष

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October 6, 2024