Month: November 2024

स्व-पर

वस्तु तो “पर” है ही, तेरे भाव भी “पर” हैं क्योंकि वे कर्माधीन हैं। फिर मेरा क्या है ? सहज-स्वभाव* ही तेरा है।…. (समयसार जी)

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मिथ्यात्व के कारण

हाथ की चार उँगलियाँ अविरति आदि तथा अंगूठा मिथ्यात्व के कारण। चारों उँगलियाँ मिथ्यात्व की सहायक हैं। जब मुट्ठी बँधती* है तब मिथ्यात्व(अँगूठे) को अविरति

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शांति

मरण के समय प्राय: कहा जाता है “दिवंगत आत्मा को शांति मिले”। इसका क्या अर्थ हुआ ? … उनके जीवन में पहले वैभव आदि सब

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तीर्थकर प्रकृति बंध

तीर्थंकर प्रकृति बंध चौथे से सातवें गुणस्थान में (जब पहली बार बंधती है)। यह प्रथमोपशम, द्वितीयोपशम, क्षयोपशम या क्षायिक सम्यग्दृष्टि के बंधती है। एक बार

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कषाय

कषाय = कष (संसार) + आय (Income) कषाय = जो सांय-सांय करे। मुनि श्री मंगलसागर जी

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दान आदि

दान…..जो श्रद्धा के साथ आंशिक रूप से दिया जाता है। त्याग… तेरा तुझको अर्पण यानी कर्म का कर्म को* कर्म से मुक्ति** पाने के लिए।

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द्रव्य

द्रव्य में गुण तथा पर्याय, ज्ञान की पहुँच पर्याय तक, भावात्मक गुण तक पहुँच नहीं। अर्थ-पर्याय पर भी पहुँच नहीं। व्यंजन पर्याय दो तरह से

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काँटे

काँटों का भी अपना महत्त्व होता है। यदि वे न होते तो हम कितने कीड़े मकोड़ों को कुचलते चले जाते तथा फूल भी सुरक्षित न

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विसंवाद

विसंवाद…. अन्यथा प्रवृत्ति कराना/ मिथ्यामार्ग पर लगा देना/ दुर्व्यवहार/ ग़लत को सही ठहराना जैसे अंडा शाकाहारी होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र –

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दुनियाँ

दुनियाँ उसको कहते भैया जो माटी का खिलौना* है, मिल जाए तो माटी** भैया, ना मिले तो सोना*** है। आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी(29 अक्टूबर)

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मंगल आशीष

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