Month: November 2024
भेद-विज्ञान
ज्ञानी को भेद-विज्ञान होता है, अज्ञानी को भेड़-विज्ञान (भेड़ चाल/ जो चलता आ रहा है/ सब कर रहे हैं, बिना विवेक के करते जाना)। (रेनू
चारित्र
चारित्र पर किताब बनाना और चारित्र को किताब बनाना – दो अलग बातें हैं। साधु दूसरी पर काम करता है और श्रावक पहली पर। मुनि
व्रतादि
किसी भी कार्य की पूर्णता के लिए चार चीज़ें आवश्यक हैं… सुद्रव्य, सुक्षेत्र, सुकाल, सुभाव इष्टोपदेश(श्लोक 3) में व्रतादि भी बताए हैं। जब चारों चीज़ें
नियंत्रण
बाह्य नियंत्रण (काय, वचन) होने पर ही अंतरंग (मन) नियंत्रित हो सकता है। यदि माता-पिता घूमने के शौकीन हों तो बच्चा घर में कैसे रह
मोक्ष
मोक्ष शुभ रूप है, शुभ के अंतिम रूप को शुद्ध कहते हैं, पुण्य रूप है (क्योंकि आज भी पुण्यबंध में कारण है) मुनि श्री प्रणम्यसागर
वक्त
इसी से जान गया मैं कि बख़्त ढलने लगे। मैं थक के छाँव में बैठा तो पेड़ चलने लगे। फ़रहत अब्बास शाह अपने हाथों की
साधुसमाधि / वैय्यावृत्य करण
साधुसमाधि –> आपत्ति/ विघ्न दूर करके समाधि (ध्यान की एकाग्रता) में स्थित कराना। रत्नत्रय में व्यवधान दूर करने की भावना। अन्य समय में ऐसा व्यवधान
अनेकांत
पाँचों इंद्रियों के विषय अलग-अलग हैं। आपस में कोई संबंध नहीं। आत्मा सबको बराबर महत्त्व देती है। इन्हीं से वह संसार के सारे ज्ञान प्राप्त
शब्द
1400-1500 साल पहले श्री राजवार्तिक में आचार्य श्री अकलंकदेव ने कहा था कि शब्द पौदगलिक/ मूर्तिक हैं, उन्हें संग्रह किया जा सकता है। आज वही
सत्संग
सन्यासी पृथ्वी का नमक है – बाइबिल, (मात्रा में कम, महत्व बहुत)। सत्संग ही स्वर्गवास है। ब्र. डॉ. नीलेश भैया
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