Month: November 2024

सहनशक्ति की सीमा

सहनशक्ति की सीमा आगमानुसार 10 भव है जो भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व के भवों में देखी जाती है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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कर्मोदय

जैसे नख़ और केश बार-बार उग आते हैं, वैसे ही कर्मोदय है। आचार्य श्री विद्यासागर जी (जैसे नख़/ केश को बार-बार काटना पड़ता है ऐसे

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ज्ञान

लौकिक जो संसार बढ़ाये। अलौकिक जो संसार घटाये। (धर्म का) पारलौकिक जो संसार से परे का हो जैसे आत्मादि। चिंतन

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व्यवहार

द्रव्य संग्रह जी में कहा है… “पुद्गल के सुख दुःख है”, यह व्यवहार से कहा है/ “पर” वस्तु से सुख दुःख की अपेक्षा से कहा

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Thinker

The Thinker* sees the invisible, feels the intangible**, and achieves the impossible. (J.L.Jain) (*जैसे भगवान/ Omniscient observer) (**जो स्पर्श से जाना न जासके/ जिसमें रस,

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स्वभाव / विभाव

जीव का स्वभाव तो दया है तो हिंसक पशुओं में कैसे घटित करेंगे ? पर्यायगत विभाव को स्वभाव कहने लगे हैं। (मनुष्य पर्याय से अहिंसक

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साधना

पार्किंसन रोग होने पर हाथ कंपने को रोकने के लिये कहते हैं –> “साधौ”। विचारों के चलायमानता को रोकने को साधना कहते हैं। मुनि श्री

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विभाव / स्वभाव

विभाव – जिसमें चाह कर भी लगातार/ बहुत देर नहीं रह सकते, तात्कालिक। स्वभाव – न चाहते हुए भी उस स्थिति में वापस आना पड़े,

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शिक्षा

शिष्य की शिक्षा पूर्ण होने पर गुरु ने तीन चीज़ें शिष्य को दीं… 1) दीपक… जो ख़ुद जलता है/ दूसरों को प्रकाश देता है पर

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मंगल आशीष

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