Month: December 2024
ॐ अर्हम्
ॐ तथा अर्हम् दोनों परमेष्ठी के प्रतीक, फिर क्या Repetition मानें ? नहीं, ॐ शक्ति का प्रतीक जबकि अर्हम् , शुद्धि/ शांति/ सिद्धी(सिद्ध) का प्रतीक।
निद्रा
निद्रा आने पर ग्लानि का भी भाव रहता है। जैसे निद्रा आने पर मनपसंद भोजन, प्रिय बच्चों में भी रुचि नहीं रहती। मुनि श्री प्रणम्यसागर
भगवान के वृक्ष
भगवान जिस वृक्ष के नीचे केवलज्ञान प्राप्त करते हैं उसमें न फल होते हैं न फूल। मुनि श्री मंगलानंद सागर जी
भाग्य
भाग्य के प्रकार –> 1. सौभाग्य – श्रावक (अच्छे परिवार में जन्मा)। 2. अहोभाग्य – श्रमण (मुनि/ साधु), जिन्होंने सौभाग्य को Encash कर लिया। 3.
पूत
पूत यानी पुण्य। इससे ही बना होगा “सपूत”। तभी तो बच्चे के बारे में पूछते हैं – “ये किनका पुण्य है ?” पर कपूत के
बड़ा
अभिमान में-> मैं बड़ा – मैं बड़ा। मायाचारी में-> तू बड़ा – तू बड़ा। लक्ष्य……….-> बड़ा मानना। आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी (9 दिसम्बर)
सम्बंध
दो प्रकार का सम्बंध – 1. संयोग द्रव्य – द्रव्य साथ रहकर एक दूसरे को प्रभावित करते हैं जैसे दूध और पानी। 2. समवाय द्रव्य
GOD
“G” से Generator, “O” से Operator, “D” से Destroyer, अपने लिये मैं खुद तीनों हूँ। मुनि श्री मंगलसागर जी
निर्वतना
निर्वतना यानि रचना, दो प्रकार – 1. मूलगुण निर्वतना – शरीर, वचन, मन की। जैसे Face की Plastic Surgery, वचन की नकल, अलौकिक शक्ति पाने
जीना
प्रायः सुनते हैं –> “बच्चों के लिये जी रहे हैं।“ यानी पराश्रित/ चिंतित –> रोगों को निमंत्रण। सही –> अपने लिये जी रहे हैं –>
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