Month: December 2024

मनुष्य / देव

मनुष्य संख्यात, देव असंख्यात, इसलिए भी मनुष्य पर्याय दुर्लभ। अधिक से अधिक 2 हजार सागर त्रस पर्याय। मनुष्य लगातार 48 भव। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मोह/ अभिमान

प्रभु के रोज दर्शन करते हैं। उनसे जुड़ क्यों नहीं पाते जबकि संसारियों से तुरंत जुड़ जाते हैं। कारण ? मोह और अभिमान। मोह से

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आकर्षण

एक प्रसिद्ध भजन है, “चले आना प्रभुजी, चले आना…” प्रश्न: प्रभु क्यों आयें ? क्या आकर्षण है तुम्हारे पास ? सिद्ध परमेष्ठियों में आकर्षण है।

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सुख

संसार में सुख बहुत हैं/ सहयोगी चीजें बहुत हैं, आपके सोकर उठने से पहले सूरज उठ आता है। संसार/ मार्गों को प्रकाशित कर देता है।

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मद/ गारव

मद के लिए कारण चाहिए, गारव (ऋद्धि, रस, सात) के लिए नहीं। आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी के सान्निध्य में भगवती आराधना- श्र्लोक 299 का

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बालक / पालक

बालक अबोध होते हैं, उनमें स्वाभाविक दोष रहते हैं। पालक सबोध होते हैं, उनमें अस्वाभाविक दोष रहते हैं। बालकों की तीव्रतम कषाय (क्रोधादि) भी पालकों

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भूतप्रेत पूजा

बेडौल शरीर/ डरावनी आकृति वालों की पूजा करने वालों से पूछें- यदि ऐसा बच्चा आपके यहाँ पैदा हो जाए तो स्वीकारोगे/ खुश होगे ? धर्मेन्द्र(चिंतन)-

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धर्म किस आयु में ?

Makeup की आयु में धर्म कर लेना, क्योंकि Checkup की आयु में तो धर्म करने लायक बचोगे ही नहीं। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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नित्य

हर पदार्थ में उत्पाद/ व्यय हो रहा है तो नित्य कैसे ? क्योंकि हर पदार्थ में – “यह वही है” बना रहता है। यही ध्रौव्यगुण/

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विकास

गुण/ चारित्र का विकास बिल्ली की आवाज़ की तरह नहीं होना चाहिए… जो पहले तेज़ और बाद में मंद मंदतर होती चली जाती है। बल्कि

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मंगल आशीष

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