क्रिया साँचा है,
भाव मूर्ति,
विडंबना यह है कि हम साँचे को ही मूर्ति मानना शुरू कर देते हैं ।
(विपुल-फरीदाबाद)
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आजकल यह कथन बिलकुल सही है – – जो भाव भगवान के लिए हैं, उन्हें हृदय में आत्मसात करने का प्रयास करें, तभी क्रिया करने का फल मिलेगा; अन्यथा साँचे को मूर्ति ही मानना पड़ेगा ।अतः उचित होगा कि, भगवान को हृदय में आत्मसात करने का, प्रयास करें ।
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आजकल यह कथन बिलकुल सही है – – जो भाव भगवान के लिए हैं, उन्हें हृदय में आत्मसात करने का प्रयास करें, तभी क्रिया करने का फल मिलेगा; अन्यथा साँचे को मूर्ति ही मानना पड़ेगा ।अतः उचित होगा कि, भगवान को हृदय में आत्मसात करने का, प्रयास करें ।