ज्ञान की एकाग्रता को ध्यान कहते हैं ।
हमारा ज्ञान क्षयोपशमिक है ।
इसलिये ये “ध्यान” क्षयोपशमिक भाव हुये ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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4 Responses
ध्यान चित्त की एकाग़ता का नाम है। ध्यान चार प़कार के होते हैं… 1 आर्तध्यान 2 रौद्रध्यान 3 धर्मध्यान 4 शुक्लध्यान । इनमे आर्त और रौद्र ध्यान संसार को बढाने वाले होते हैं जो अशुभ होते हैं। धर्म और शुक्ल ध्यान मोक्ष प्राप्ती में सहायक होते हैं जो शुभ होते हैं। आर्तध्यान में इष्टवियोग आदि के निमित्त से पीडा़ या दुख रूप परिणाम होते हैं। रौद्रध्यान का आशय क़ूरता से किया गया कर्म होता है जैसे हिंसा करना उर झूठ आदि में आनन्द लेना होता है।
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ध्यान चित्त की एकाग़ता का नाम है। ध्यान चार प़कार के होते हैं… 1 आर्तध्यान 2 रौद्रध्यान 3 धर्मध्यान 4 शुक्लध्यान । इनमे आर्त और रौद्र ध्यान संसार को बढाने वाले होते हैं जो अशुभ होते हैं। धर्म और शुक्ल ध्यान मोक्ष प्राप्ती में सहायक होते हैं जो शुभ होते हैं। आर्तध्यान में इष्टवियोग आदि के निमित्त से पीडा़ या दुख रूप परिणाम होते हैं। रौद्रध्यान का आशय क़ूरता से किया गया कर्म होता है जैसे हिंसा करना उर झूठ आदि में आनन्द लेना होता है।
Shayad isliye kevalgyaani Ko,(kshaayik gyaani) ko aart/raudra dhyaan nahin hote?
रौद्रध्यान तो मुनियों के ही नहीं होता, आर्तध्यान भी 6ठे गु.स्थान तक ही,वह भी विशेष परिस्थितियों जैसे गुरु से विछोह आदि में ही होता है ।
Okay.