पूजा करने से पूज्य बनते हैं, यह भगवान की सेवा नहीं, भगवान बनने की सीख है,
जैसे जूनियर डॉक्टर अपने सीनियर की आज्ञा पालन करता हुआ सीखता है,
जबकि चपरासी आज्ञा पालन, नौकरी के लिये करता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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3 Responses
पूजा का मतलब पंच परमेष्ठी के गुणों को चिंतवन करके आत्मसात करना होता है। आत्मा से परमात्मा बनने के लिए यह प़थम कदम है।पूजा भगवान् की सेवा करना नहीं होता है बल्कि भगवान् बनने की सीख है। अतः भगवान् बनने के लिए पूजा से शुरुआत करना चाहिए।
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पूजा का मतलब पंच परमेष्ठी के गुणों को चिंतवन करके आत्मसात करना होता है। आत्मा से परमात्मा बनने के लिए यह प़थम कदम है।पूजा भगवान् की सेवा करना नहीं होता है बल्कि भगवान् बनने की सीख है। अतः भगवान् बनने के लिए पूजा से शुरुआत करना चाहिए।
That means , hum alag alag bhavon se Pooja karte hain, right?
Naturally,
अलग-अलग व्यक्तियों तथा एक व्यक्ति के अलग-अलग समय पर अलग-अलग भाव होते ही हैं ।