1. अभ्यास रूप – दूसरी प्रतिमा तक, दो बार
2. सामायिक प्रतिमा – तीसरी प्रतिमा, तीन बार
3. सामायिक आवश्यक – मुनियों के, तीन बार
4. सामायिक चारित्र – मुनियों के, हर समय
तत्वार्थ सूत्र टीका – 9/18
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सामायिक—समता-भाव रखना सामायिक है अथवा सावध योग से निवृत होना सामायिक है।श्रावक और साधु दोनो के लिए सामायिक करना आवश्यक है।श्रावक को प़तिदिन नियतकाल मे करना चाहिए जो अभ्यास के रूप होता है।दूसरी प़तिमा वालो को दो बार जब कि तीन प़तिमा धारी को तीन बार करना चाहिए।साधुओं का जीवन समतामय है, फिर भी समता रुप सामायिक का पालन करते हुए प़तिदिन संध्याकालो में सम्पन्न करते हैं।सामायिक कमसे कम दो घड़ी अर्थात 48 मिनट और अधिकतम 6 घड़ी तक की जाती है।सामायिक-व़त प़तिदिन संध्याकालो में कमसे कम दो घड़ी पर्यन्त समस्त पाप कायोँ का त्याग करके पंचपरमेष्ठी का चिन्तन करने की प़तिज्ञा लेकर करना चाहिए।
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सामायिक—समता-भाव रखना सामायिक है अथवा सावध योग से निवृत होना सामायिक है।श्रावक और साधु दोनो के लिए सामायिक करना आवश्यक है।श्रावक को प़तिदिन नियतकाल मे करना चाहिए जो अभ्यास के रूप होता है।दूसरी प़तिमा वालो को दो बार जब कि तीन प़तिमा धारी को तीन बार करना चाहिए।साधुओं का जीवन समतामय है, फिर भी समता रुप सामायिक का पालन करते हुए प़तिदिन संध्याकालो में सम्पन्न करते हैं।सामायिक कमसे कम दो घड़ी अर्थात 48 मिनट और अधिकतम 6 घड़ी तक की जाती है।सामायिक-व़त प़तिदिन संध्याकालो में कमसे कम दो घड़ी पर्यन्त समस्त पाप कायोँ का त्याग करके पंचपरमेष्ठी का चिन्तन करने की प़तिज्ञा लेकर करना चाहिए।