इसके भी 8 अंग होते हैं,
(शब्दाचार, अर्थाचार, तदुभयाचार, कालाचार, विनयाचार,
उपधानाचार – बार बार स्मरण करना, बहुमानाचार, अनिन्हवाचार) ।
यदि उनका पालन ना किया जाये, तो क्या वह ज्ञान सम्यग् कहलायेगा ?
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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सम्यक्ज्ञान,सम्यग्दर्शन के साथ होने वाले यथार्त या समीचीन ज्ञान को कहते हैं,इसके भेद 5 होते हैं, जबकि 8 अंग होते हैं।उपधानाचार में बार बार स्मरण करना, बहुमानचार, अनिन्हवाचार होता है यदि इसका पालन न किया जाये तो वह ज्ञान सम्यग् नही कहला सकता है।अतः सम्यग्दर्शन के भेद और अंग का पालन करने पर ही समक्यज्ञान की ओर बढने के कदम है।
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सम्यक्ज्ञान,सम्यग्दर्शन के साथ होने वाले यथार्त या समीचीन ज्ञान को कहते हैं,इसके भेद 5 होते हैं, जबकि 8 अंग होते हैं।उपधानाचार में बार बार स्मरण करना, बहुमानचार, अनिन्हवाचार होता है यदि इसका पालन न किया जाये तो वह ज्ञान सम्यग् नही कहला सकता है।अतः सम्यग्दर्शन के भेद और अंग का पालन करने पर ही समक्यज्ञान की ओर बढने के कदम है।