द्रव्य/गुण/पर्याय

द्रव्य शुद्ध, तो गुण शुद्ध, तभी पर्याय शुद्ध ।
पंचमकाल में आत्मा को सिर्फ शक्ति रूप ही शुद्ध कह सकते हैं ।
(जैसे सिपाही, एस. पी. बन सकता है, पर अपने आपको एस. पी कहने/मानने लगे तो उसकी कैसी दुर्गति होगी !! )

शुद्ध निश्चय नय तो सिर्फ जानने के लिये है, कहने के लिये नहीं, अशुद्ध निश्चय नय छोड़ने के लिये है ।

आचार्य श्री विभवसागर जी

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