गुणस्थान
दु:खमा-दु:खमा, उत्सर्पिणी के दु:खमा तथा म्लेच्छ खंडों में हमेशा पहला गुणस्थान ही रहता है ।
भोगभूमियों में चौथा गुणस्थान तक होता है । यहां ॠद्धिधारी मुनि अवधिज्ञान से पता कर लेते हैं कि अमुक जीव निकट भव्य है और उसे वहां जाकर सम्बोधन भी करते हैं ।
सातवें नरक में चौथे गुणस्थान तक होता है । वहां चक्रवर्ती भी जाते हैं ।
पं.रतनलाल बैनाड़ा जी