आकिंचन धर्म

एकत्व की भावना ही आकिंचन धर्म है ।
कर्तत्व, भोगत्व और स्वामित्व बुद्धि से ही, बुद्धि खराब हो रही है ।
जो कुछ संसार में दिखाई दे रहा है, वह अज्ञान का फल है/ कर्म फल है ।
वीतरागता की शरण में बैठकर खुद देख लो, कितनी शान्ति और आनन्द मिलता है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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