चित्त अचेतन,
मन चेतन ।
हालाँकि धर्म में इनको अलग अलग नहीं माना है ।
(कृपया comments भी देखें)
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5 Responses
मन-नाना प़कार के विकल्प जाल को कहते हैं।मन को अनिन्दिय या अन्तकरण भी कहते हैं।मन भी दो प्रकार के होते हैं द़व्य मन और भाव मन। अतः चित्त अचेतन और मन चेतन होता है। हालांकि धर्म में अलग-अलग नहीं माना है।
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मन-नाना प़कार के विकल्प जाल को कहते हैं।मन को अनिन्दिय या अन्तकरण भी कहते हैं।मन भी दो प्रकार के होते हैं द़व्य मन और भाव मन। अतः चित्त अचेतन और मन चेतन होता है। हालांकि धर्म में अलग-अलग नहीं माना है।
यह कथन सत्य है कि चित्त अचेतन और मन चेतन है लेकिन धर्म में अलग-अलग नहीं माना गया है।
लेकिन जब धर्म में, “द्रव्य मन ” (चित्त) और “भाव मन” (मन) का विवरण है, तब हम कैसे कह रहे हैं कि धर्म में इन्हें अलग-अलग नहीं माना गया है ?
द्रव्य-मन को ही चित्त कहते हैं यह किसने कहा !
वैसे ये दोनों शब्दों में confusion है…
कल मुनि श्री प्रणम्य सागर जी ने बताया …
मन ऊपरी, चित्त अंतरंग ।
Okay.