निश्चय-नय से जिस वस्तु में परिणमन होता है, वही वस्तु उस परिणमन की कर्ता भी होती है ।
1. शुद्ध निश्चय-नय से शुद्ध भावों का कर्ता, आत्मा ।
2. अशुद्ध निश्चय-नय से अशुद्ध भावों का कर्ता ।
3. व्यवहार-नय से रोटी आदि का ।
ज्ञानशाला
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8 Responses
निश्चय नय—जो अभेद रूप से वस्तु का निश्चय करते हैं, वह कहलाता है और वस्तु को जानने का एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसमें कर्ता,कर्म आदि भाव एक दूसरे से भिन्न नहीं होते हैं।यह भी दो प्रकार के होते हैं, शुद्ध और अशुद्ध निश्चय नय होते है। शुद्ध निश्चय नय से भावों का कर्ता,आत्मा।
दूसरा अशुद्ध निश्चय नय से अशुद्ध भावों का कर्ता, जबकि व्यवहार नय रोटी आदि का होता है।
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निश्चय नय—जो अभेद रूप से वस्तु का निश्चय करते हैं, वह कहलाता है और वस्तु को जानने का एक ऐसा दृष्टिकोण है जिसमें कर्ता,कर्म आदि भाव एक दूसरे से भिन्न नहीं होते हैं।यह भी दो प्रकार के होते हैं, शुद्ध और अशुद्ध निश्चय नय होते है। शुद्ध निश्चय नय से भावों का कर्ता,आत्मा।
दूसरा अशुद्ध निश्चय नय से अशुद्ध भावों का कर्ता, जबकि व्यवहार नय रोटी आदि का होता है।
Can meaning of this post be explained please?
शुद्ध/अशुद्ध भावों का परिणमन आत्मा में, इसलिए कर्ता आत्मा;
पर व्यवहार में, रोटी बनाने वाली स्त्री को ही कर्ता कहते हैं। ।
इसका मतलब, व्यव्हार नय से, हम अजीव को कर्ता मानते हैं जबकि आत्मा कर्ता है ?
नहीं, व्यवहार-नय से भी कर्ता तो आत्मा ही है, पर रोटी की ।
निश्चय-नय से भावों की ।
“रोटी” se kya taatparya hai?
कोई भी संसारिक कार्य जैसे रोटी बनाना ।
Okay.