पदार्थ की प्रयोजनभूत क्रिया को अर्थ-क्रिया कहते हैं ।
घड़े की पानी ठंड़ा/शुद्ध करना, शरीर की भूख/प्यास शांत करनादि, आत्मा की सुखी/आनंदित रहना ।
पर विड़म्बना है कि आत्मा ने शरीर की क्रियाओं को अपनी क्रियायें बना लिया है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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पदार्थ – -जो जाना जाए या निश्चय किया जाए उसे अर्थ या पदार्थ कहते हैं। मोक्ष मार्ग में अपने जानने योग्य जीव अजीव आश्रय बंध संवर निर्जरा मोक्ष पुण्य और पाप ये सब नौ पदार्थ हैं।
अतः आत्मा के लिए अर्थ सम्यग्दर्शन का सहारा लेना पड़ता है। अर्थ सम्यग्दर्शन का मतलब आगम में पढ़े बिना ही उदय प़तिपादित अर्थ या भाव को जानकर भी सम्यग्दर्शन होता है।
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पदार्थ – -जो जाना जाए या निश्चय किया जाए उसे अर्थ या पदार्थ कहते हैं। मोक्ष मार्ग में अपने जानने योग्य जीव अजीव आश्रय बंध संवर निर्जरा मोक्ष पुण्य और पाप ये सब नौ पदार्थ हैं।
अतः आत्मा के लिए अर्थ सम्यग्दर्शन का सहारा लेना पड़ता है। अर्थ सम्यग्दर्शन का मतलब आगम में पढ़े बिना ही उदय प़तिपादित अर्थ या भाव को जानकर भी सम्यग्दर्शन होता है।