पुण्य की स्थिति पाप-रूप*, सो घटाओ पुण्य से ।
पुण्य की निर्जरा का कहीं उल्लेख नहीं ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
* जैसे पाप-प्रकृतियों की स्थिति पुण्य से घटती है ।
(पुण्य-प्रकृतियों का अनुभाग बढ़ता है, पुण्य से)
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4 Responses
पुण्य –जो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है उसे पुण्य कहते हैं, अथवा जीव दया,दान, पूजा आदि शुभ परिणाम को पुण्य कहते हैं। पाप- -जो आत्मा को शुभ से बचाये वह पाप है अथवा दूसरों के प्रति अशुभ परिणाम होना ही पाप है। हिंसा, झूठा, चोरी,कुशील और परिग़ह ये सब पांच पाप हैं।
जब पुण्य की स्थिति में पाप रुप घटने लगता है,इसी प्रकार पाप प़कृतियो की स्थिति में पुण्य कम होने लगता है।
अतः जीवन में पुण्य बढ़ाने का प्रयास करते रहें और पाप क़ियायें कम करते रहना ताकि पुण्य अर्जित होता रहे और जीवन का कल्याण हो सकता है।
पाप-प्रकृतियों की स्थिति को किससे कम करते हैं ?
पुण्य से ।
पुण्य-प्रकृतियों की स्थिति किससे कम होगी ?
पुण्य से ।
तो पुण्य की स्थिति और पाप की स्थिति एक जैसी हुयीं या नहीं !
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पुण्य –जो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है उसे पुण्य कहते हैं, अथवा जीव दया,दान, पूजा आदि शुभ परिणाम को पुण्य कहते हैं। पाप- -जो आत्मा को शुभ से बचाये वह पाप है अथवा दूसरों के प्रति अशुभ परिणाम होना ही पाप है। हिंसा, झूठा, चोरी,कुशील और परिग़ह ये सब पांच पाप हैं।
जब पुण्य की स्थिति में पाप रुप घटने लगता है,इसी प्रकार पाप प़कृतियो की स्थिति में पुण्य कम होने लगता है।
अतः जीवन में पुण्य बढ़ाने का प्रयास करते रहें और पाप क़ियायें कम करते रहना ताकि पुण्य अर्जित होता रहे और जीवन का कल्याण हो सकता है।
“पुण्य की स्थिति ko पाप-रूप” kyun kaha?
पाप-प्रकृतियों की स्थिति को किससे कम करते हैं ?
पुण्य से ।
पुण्य-प्रकृतियों की स्थिति किससे कम होगी ?
पुण्य से ।
तो पुण्य की स्थिति और पाप की स्थिति एक जैसी हुयीं या नहीं !
Okay.