स्त्री-मुक्ति का निषेध नहीं कहा बल्कि सावरण लिंग का निषेध है ।
पुरुष को भी सावरण लिंग सहित मुक्ति नहीं ।
जो हुआ नहीं/हो नहीं रहा/होगा नहीं, भगवान वही कहते हैं, वही व्यवस्था हो जाती है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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4 Responses
लिंग का अर्थ चिन्ह होता है। जैनागम में तीन लिंग माने जाते हैं, मुनि, आर्यिका और उत्कृष्ट श्रावक। यह तीनों लिंग के दो प्रकार होते हैं, द़व्य और भाव भेद। शरीर का ब़ाह्य वेष, द़व्य लिंग तथा अंतरंग में वीतरागता रुप भाव लिंग होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि स्त्रीमुक्ति का निषेध नहीं कहा, बल्कि सावरण लिंग का निषेध है। पुरुष को भी सावरण लिंग सहित मुक्ति नहीं होती है। अतः जो हुआ नहीं,हो नहीं रहा या होगा नहीं, भगवान् वही कहते हैं, वही व्यवस्था हो जाती है। भाव लिंग में अंतरग भावना वीतरागता के होते हैं वही मुक्ति पाने में समर्थ रहते हैं।
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लिंग का अर्थ चिन्ह होता है। जैनागम में तीन लिंग माने जाते हैं, मुनि, आर्यिका और उत्कृष्ट श्रावक। यह तीनों लिंग के दो प्रकार होते हैं, द़व्य और भाव भेद। शरीर का ब़ाह्य वेष, द़व्य लिंग तथा अंतरंग में वीतरागता रुप भाव लिंग होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि स्त्रीमुक्ति का निषेध नहीं कहा, बल्कि सावरण लिंग का निषेध है। पुरुष को भी सावरण लिंग सहित मुक्ति नहीं होती है। अतः जो हुआ नहीं,हो नहीं रहा या होगा नहीं, भगवान् वही कहते हैं, वही व्यवस्था हो जाती है। भाव लिंग में अंतरग भावना वीतरागता के होते हैं वही मुक्ति पाने में समर्थ रहते हैं।
“सावरण लिंग” का kya arth hai?
सावरण = सहित + आवरण
Okay.