वस्तु का स्वभाव “धर्म” है और “स्वभाव” हर वस्तु में होता है यानि “धर्म” हर वस्तु में होता है (इसीलिए धर्म अनादि भी है) ।
ज़रुरत है खोजने की/पर-चतुष्टय पर चिंतन दृष्टि की ।
चिंतन
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4 Responses
धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र पर श्रद्धा करना, अथवा जो जीवों को संसार के दुखों से बचाकर मोक्ष सुख में पहुचाये होता है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि वस्तु का स्वभाव धर्म है और स्वभाव हर वस्तु में होता है, इसलिए धर्म अनादि भी है। इसे खोजने के लिए पर-चतुष्टय पर चिंतन की द्वष्टि होना आवश्यक है।
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धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यग्चारित्र पर श्रद्धा करना, अथवा जो जीवों को संसार के दुखों से बचाकर मोक्ष सुख में पहुचाये होता है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि वस्तु का स्वभाव धर्म है और स्वभाव हर वस्तु में होता है, इसलिए धर्म अनादि भी है। इसे खोजने के लिए पर-चतुष्टय पर चिंतन की द्वष्टि होना आवश्यक है।
“पर-चतुष्टय पर चिंतन की द्वष्टि होना आवश्यक है” ya “swa-chatushtay” par?
यहाँ पर “दया धर्म का मूल है” की अपेक्षा कहा गया है ।
Okay.