अभिषेक
इसे करते श्रावक हैं पर महत्त्व देखो –
गंधोदक मुनिराज भी शिरोधार्य करते हैं, अभिषेक साधु ख़ुद नहीं कर सकते हैं।
कहते हैं – हनुमान का पत्थर ही तैरता था, राम का नहीं।
मुनि श्री सुधासागर जी
इसे करते श्रावक हैं पर महत्त्व देखो –
गंधोदक मुनिराज भी शिरोधार्य करते हैं, अभिषेक साधु ख़ुद नहीं कर सकते हैं।
कहते हैं – हनुमान का पत्थर ही तैरता था, राम का नहीं।
मुनि श्री सुधासागर जी
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अभिषेक का तात्पर्य जिन प़तिमा के स्नपन या प़क्षालन को कहते हैं, इसका मूल उद्देश्य अपनी आत्मा के परिणामों को निर्मलता होना होता है।
उपरोक्त कथन सत्य है कि साधु अभिषेक नहीं करते हैं, लेकिन मुनिराज गंधोदक शिरोधार्य करते हैं। अभिषेक ग्रहस्थ करते हैं एवं प़क्षाल भी लेते हैं। उपरोक्त कथन सत्य है कि हनुमान का पत्थर तैरता था लेकिन राम का नहीं तैरता था। अतः जीवन में श्रावक को प़तिदिन अभिषेक करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।