पुण्य की महिमा प्रथमानुयोग में ही नहीं, प्रवचनसार जी में भी लिखी है – “पुण्य फला अरहंता” ।
अप्रमत्त अवस्था में यदि अंतर्मुहूर्त तक साता का बंध होता रहे तो केवलज्ञान होना निश्चित है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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पुण्य का तात्पर्य जो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है, अथवा जीव के दान पूजा आदि शुभ परिणाम को भी पुण्य कहते हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन पूर्ण सत्य है कि पुण्य की महिमा प़थमानुयोग में ही नहीं बल्कि प़वचन सार जी में भी पुण्य फला अरहतां।जो महाराज ने उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है ्।
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पुण्य का तात्पर्य जो आत्मा को पवित्र करता है या जिससे आत्मा पवित्र होती है, अथवा जीव के दान पूजा आदि शुभ परिणाम को भी पुण्य कहते हैं।
आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन पूर्ण सत्य है कि पुण्य की महिमा प़थमानुयोग में ही नहीं बल्कि प़वचन सार जी में भी पुण्य फला अरहतां।जो महाराज ने उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है ्।