पाप क्रियायें

घर में गंदगी/धूल दिन-रात आती रहती है, सफाई कई बार।
जीवन में पाप क्रियायें हर समय, उनकी सफाई कम से कम एक बार तो भाव/प्रायश्चितपूर्वक कर लो।
मुनिराज तो बिना पाप क्रियायें किये, 3-3 बार प्रतिक्रमण आदि करते हैं।

चिंतन

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One Response

  1. पाप का तात्पर्य आत्मा को अशुभ से बचाए, अथवा दूसरों के प्रति अशुभ परिणाम होना भी पाप है, इसमें हिंसा झूठ, चोरी,कुशील एवं परिग़ह पांच पाप है। पुण्य का तात्पर्य जो आत्मा को पवित्र करता है, अथवा जीव के दिमाग,दान, पूजा आदि शुभ परिणाम होते हैं। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि जीवन में पाप क़ियाये हर समय करते हैं,उनकी सफाई कम से कम प्रायश्चित करना चाहिए। मुनि महाराज तो पाप नहीं करते हैं लेकिन तीन तीन बार प़तिकमण तो करते हैं। अतः जीवन में पापों को छोड़कर पुण्य की अग्रसर होना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।

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