अज्ञान
1. जब तक पूरा ज्ञान (केवलज्ञान) प्रकट न हो जाय, यानी 1 से 12 गुणस्थानों में अज्ञान/ औदयिक भाव रहेगा। यह सम्यग्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि दोनों में रहेगा।
2. क्षयोपशम भाव में भी ज्ञानाज्ञान आया है। यह मिथ्यात्व के उदय/सद्भाव से होने वाला अज्ञान है जैसे कुमति, कुश्रुत, कुअवधि। यह मिथ्यादृष्टि को ही होता है, 1 से 3 गुणस्थानों में।
मुनि श्री प्रणम्य सागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र- 2/6)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने अज्ञान का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः ज्ञान की उपलब्धि परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।