शरीरों की सूक्ष्मता
औदारिक से कार्मण तक सूक्ष्मता अधिक-अधिक होती जाती है।
सूक्ष्मता दो दृष्टि से –
1.स्थूलता में कमी
2.दृष्टिगोचर न होना
वैक्रियक शरीर देव दिखाना चाहें तो ही दिखता है। समवसरण तथा कल्याणकों में तो दिखते ही हैं। तैजस शरीर दिखता नहीं पर उसका कार्य दिखता है उससे अनुमान लगा सकते हैं, कार्य से कारण को समझा जा सकता है।
(तैजस शरीर के Indication दिखते हैं। कार्मण का तो फल आने पर पता लगता है)
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थसूत्र- 2/50)
One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने शरीरों की सूक्ष्मता का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।