पुरुषार्थ
मुनिपद भारी पुरुषार्थ का फल होता है। पर कुछ मुनि बनने के बाद भी कषायों को क्यों नहीं नियंत्रित कर पाते ?
पुरुषार्थ दो प्रकार का →
1. साधना पुरुषार्थ → मुनि बने
2. साध्य पुरुषार्थ → मुनि पद में शुद्धता बनाये रखना
ऐसे ही घड़े बनाने के लिये साधन/ सामान जुटाना तथा घड़े बनाने की कला लगाकर घड़े बनाना।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (श्री भावपाहुड- टीका)
One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने पुरुषार्थ को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए हर क्षेत्र में पुरुषार्थ करना परम आवश्यक है।