Category: 2015

पुदगल भी अमूर्तिक

जीव के साथ बंधी पुदगल कर्म वर्गणाऐं भी उपचार से अमूर्तिक भाव को प्राप्त कर लेती हैं । जीव तथा पुदगल में मूर्तिक और अमूर्तिक

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निर्जरा

सविपाक तथा अकाम निर्जरा सब जीवों के (सम्यग्दृष्टि व मिथ्या दृष्टि के भी), अविपाक वृतियों के, पर सम्यग्दर्शन के सम्मुख खड़े पहले गुणस्थान वाले के

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कर्म प्रक्रिया

कार्मण शरीर में असाता का उदय, तो तैजस को बुखार, औदारिक बीमार । इलाज- कार्मण का इलाज किये बिना रोग ठीक होने वाला नहीं जैसा

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शरीरों के प्रदेश

औदारिक वैक्रियक से बड़ा, पर प्रदेश कम, सो कैसे ? औदारिक वर्गणायें बड़ी, वैक्रियक की छोटी । ऐसे ही आहारक की असंख्यात गुणी छोटी, जबकि

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समुदघात

सातों समुदघात में आत्मप्रदेश मूल शरीर से Linked रहते हैं । पं. रतनलाल बैनाडा जी

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कर्मोदय

सब कर्मों की वर्गणाऐं उदयकाल आने पर झरती रहतीं हैं । पर जिनको बाहरी निमित्त मिल जाता है उनका उदय कहलाता है, इसे रसोदय कहते

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उदय/बंध

जिस कर्म प्रकृति का उदय होता है, प्राय: उसी का बंध भी होता है । जैसे अंतराय के उदय से कार्य सिद्धि नहीं हुई तो

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हुंड़ावसर्पिणी के अपवाद

क्या सब हुंड़ावसर्पिणी के अपवाद एक से ही होते हैं ? आगम में हुंड़ावसर्पिणी के अपवाद बतायें हैं, अन्य कालों में कैसे अपवाद होते हैं,

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असाता

दु:ख का वेदन कराने के अलावा (असाता का उदय), सुख की सामिग्रियों का नाश भी करता है । इसमें अंतराय का उदय भी सहयोग करता

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मंगल आशीष

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