Category: 2015
वैक्रियक शरीर
चक्रवर्ती का वैक्रियक शरीर उनके औदारिक शरीर से निकलता है इसीलिये इन सब शरीरों से संतान भी पैदा होती रहती हैं। बाई जी
रागादि परिणाम
अशुद्ध निश्चय नय से ये आत्मा के ही होते हैं ,पौदगलिक नहीं । आचार्य श्री विद्यासागर जी (जैसे सम्यक् मिथ्यात्व, पानी मिला दूध है, पानी
कारण/कार्य
आहार संज्ञा ( जन्मजन्मांतरों तक दु:ख का कारण है); क्षुधा-परिषह ( कुछ समय के लिये है), कार्य है । वेद, आत्मा (अशुद्ध) के परिणाम हैं; मैथुन
अनाहारक
गत्यानुपूर्वी की उदीरणा के समय अनाहारक, केवली स. घा. और १४ वा गुणस्थान ,अपवाद । आचार्य श्री विद्यासागर जी
काललब्धि
अलग अलग जीवों के पुरूषार्थ अलग अलग, सो उनकी काललब्धि भी अलग अलग । मुनि श्री कुंथुसागर जी
कषाय समुद्घात
इसमें घात करने के भाव भी हो जाते हैं । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
संस्थान विचय
6 गुणस्थान वाले मुनिराज को ही, क्योंकि जो प्रत्यक्ष नहीं दिखता, उसके लिये श्रद्धा अधिक चाहिये । चिंतन
मनुष्यों की संख्या
यह 29 अंक प्रमाण है, पर इसमें सिर्फ पर्याप्तक मनुष्य ही लिये गये हैं (निवृत्ति अपर्याप्तक भी शामिल है) । सम्मूर्च्छन मनुष्य तो असंख्यात होते
मतिज्ञान
इसमें पूर्णज्ञान होता है (धारणा तक) आभास नहीं, जातिस्मरण भी इसी से । श्रुतज्ञान आगे का विश्लेषण । मुनि श्री निर्वेगसागर जी
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