Category: 2015

छदमस्थ

छदमस्थ किन गुणस्थानों में मानें ? श्रावक – 1 से 5 तक, मुनि – सरागी – 6 से 10 तक, वीतरागी – 11, 12, गुणस्थानवर्ती

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सप्तम गुणस्थान

क्या विहार/प्रवृत्ति में भी सप्तम गुणस्थान होता है ? परिहार विशुद्धि में 6 व 7 गुणस्थान होते हैं । 6 व 7 गुणस्थानों के काल

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अपर्याप्तक

विग्रह गति में अपर्याप्तक, योनि स्थल पर पहुँचने के बाद लब्धि या निवृत्ति, बाद में निवृत्ति-अपर्याप्तक ही पर्याप्तक बन जाते हैं । ये चारों विभाजन

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क्षायिक सम्यग्दर्शन

क्षायिक सम्यग्दर्शन होते समय मिथ्यात्व का संक्रमण सम्यक्-मिथ्यात्व में और सम्यक्-मिथ्यात्व का सम्यक्-प्रकृति में हो जाता है तब सम्यक्-प्रकृति का क्षय होता है । बाई

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परिणमन

रस रक्तादि धातुओं का परिणमन क्रम से और ज्ञानावरणादि कर्मों का युगपद होता है । कर्मकांड़ – 16

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उद्योत नामकर्म

एक से लेकर पंचेंद्री संज्ञी तिर्यंचों के होता है । गुणस्थान एक से पाँच तक । बाई जी

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बिम्ब दर्शन

सम्यग्दर्शन भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन से ज्यादा, जिनबिंब दर्शन से क्यों हो जाता है ? सम्यग्दर्शन विश्वास का विषय है, प्रत्यक्ष दर्शन में विश्वास वाली

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पुण्य

पुण्य और इसका फल, दोनों हेय नहीं, फल का दुरुपयोग हेय है । मुनि श्री कुंथुसागर जी

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भाव

संख्या कि अपेक्षा – औपशमिक भाव सबसे पहले इसीलिये लिया क्योंकि धर्म की शुरुआत इसी से होती है (4 से 11 गुणस्थान) 2. क्षायिक (4

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भगवान की क्षुधा

परम औदारिक शरीर (13, 14 गुणस्थान) होने के बाद तो भगवान की क्षुधा होगी ही नहीं, क्योंकि उनके शरीर में जीव समाप्त हो जाते हैं।

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मंगल आशीष

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