Category: 2016
गुणस्थानों में सम्यक्त्वादि
चौथे गुणस्थान में क्षायिक सम्यक्त्व लब्धि तथा केवली के उत्कृष्ट (परभावगाढ़), श्रुत केवली के अवगाढ़ सम्यक्त्व होता है । ऐसे ही क्षायिक चारित्र में बारहवें
स्त्री-लिंग छेदन
एक बार स्त्री से पुरुष बनने को लिंग-छेदन नहीं कहते, हमेशा हमेशा के छेदन को कहते हैं – जैसे सीता का लिंग-छेदन । क्या पुरुषों
निधत्ति/निकाचित
ऐसे कर्मों का स्वभाव देवदर्शन से तथा 9 वें गुणस्थान में जाने से समाप्त हो जाता है तथा यूँ कहें कि – अलग अलग कर्म
आत्मानुभूति
सम्यग्दर्शन होने पर भी निचले गुणस्थानों में आत्मानुभूति क्यों नहीं होती ? कषाय की उपस्थिति में कषायानुभूति ही होगी, आत्मानुभूति नहीं ।
निश्चय नय और आस्रव
निश्चय नय से आस्रव की परिभाषा नहीं बनती, क्योंकि निश्चय नय शुद्ध को ही विषय करता है । पाठशाला
कालाणु
1, 1 काल, अणु के बराबर होता है, इसीलिये उसे कालाणु कहते हैं । कालाणुओं के बीच जगह नहीं होती है । ये Cube के आकार
तैजस/आहारक
इन शरीरों के निकलते समय औदारिक वर्गणाओं का अनुदय और अनुबंध रहता है । इस समय तैजस/आहारक वर्गणाओं का कार्मण वर्गणाओं से ही संबंध होता
विग्रह गति में पर्याप्तियाँ
विग्रह गति में सब जीवों को अपर्याप्तक ही माना जाता है क्योंकि पर्याप्तक/अपर्याप्तक के अलावा किसी भी जीव की तीसरी अवस्था नहीं होती है ।
कारण/कार्य तथा निमित्त/नैमित्तिक
कारण/कार्य व्यवस्था एक द्रव्य में, निमित्त/नैमित्तिक दो द्रव्यों के बीच में ।
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