Category: 2010

संवर

संवर का मुख्य कारण तप है । तप से निर्जरा मुख्य रूप से होती है । तप से पुण्य बंध भी होता है । कारण

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बृम्हचर्य धर्म

अपने और दूसरों के प्राणों की रक्षा ही बृम्हचर्य धर्म है | आचार्य श्री विद्यासागर जी

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आकिंचन धर्म

एकत्व की भावना ही आकिंचन धर्म है । कर्तत्व, भोगत्व और स्वामित्व बुद्धि से ही, बुद्धि खराब हो रही है । जो कुछ संसार में

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करूणा

करुणा करने वाला अहं का पोषक भले ही ना बने, परन्तु स्वंय को गुरू अवश्य समझने लगता है तथा लेने वाले को शिष्य । सुख

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निमित्त

भगवान की वाणी खिरने के लिये भी निमित्त चाहिये । तभी तो भगवान की वाणी गणधर के बिना खिरती नहीं है । आचार्य श्री विद्यासागर

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निद्यत्ति/निकाचित

देवदर्शन से निद्यत्ति और निकाचित कर्म कटते नहीं बल्कि, उनका निद्यत्ति पना और निकाचित पना समाप्त हो जाता है । गुरू श्री (शब्दकोश 136,138)

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कुश्रुत ज्ञान

कुश्रुत ज्ञान असंज्ञियों के सिर्फ इंद्रियों से होता है, पर संज्ञीयों के मुख्यत: मन से होता है (बाह्य + अंग प्रविष्ट का ज्ञान) । पं.

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कुमति/सुमति

कुमति/सुमति ज्ञान में अंतर क्या है ? दोनों ही बराबर, दोनों में क्षयोपशम बराबर है, सिर्फ “सुमति” में सम्यग्दर्शन का ठप्पा लगा है । पं.

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बहुरूपणी विद्या

बहुरूपणी विद्या से जो बहुत सारे रूप या सेना बनती है, उनमें आत्मायें होती हैं क्या ? यदि होतीं हैं, तो वह आत्मायें किसकी होतीं

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सयोग केवली में

–                                                                                                                                                  क्षायिक लाभ से – नो कर्म वर्गणाओं का ग्रहण होता है । क्षायिक भोग से – गन्धोदक, पुष्पवृष्टि आदि होती है । क्षायिक उपभोग

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मंगल आशीष

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