Category: 2010

परनिंदा

परनिंदा आदि से ‘नीच गोत्र कर्म’ में विशेष अनुभाग पड़ता है । बाकि 6 कर्मों का ‘प्रदेश बंध’ होता है । तत्वार्थ सुत्र टीका –

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सम्यक्त्व और आश्रव

सम्यक्त्व तो आश्रव का कारण होता नहीं है, फिर देवायु में कारण क्यों कहा है ? सम्यग्द्रष्टि जीव जब आयुबंध करता है तब देवायु का

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साम्परायिक आश्रव

साम्परायिक आश्रव में 5 इंद्रिय, 4 कषाय, 5 अव्रत और 25 क्रियायें ली हैं । जब इंद्रिय ले लीं और उनके द्वारा ही कषाय, अव्रत

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कषाय

आत्मा को कषित अर्थात् घाततीं हैं क्योंकि दुर्गति में ले जातीं हैं । तत्वार्थ सुत्र टीका – पं. कैलाशचंद्र जी

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शुभ – अशुभ योग

शुभ योग ज्ञानावरण आदि पापकर्मों के बंध में भी कारण है । ‘शुभ पुण्यस्य’ अघातिया कर्मों की अपेक्षा कहा गया है यानि शुभ योग से,

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चारित्र मोहनीय

चारित्र मोहनीय के आश्रव के क्या कारण हैं ? कषाय के उदय से होने वाले तीव्र आत्म परिणाम ।

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पुदगल का उपकार

सुख और जीवन तो पुदगल का उपकार है पर दु:ख और मरण उपकार कैसे हुये ? दु:ख और मरण, विरक्ति के कारण होने से, ज्ञानी

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व्रती

व्रती 3 शल्य ( माया – मायाचारी, निदान, मिथ्यादर्शन ) रहित होता है ।

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अलोकाकाश

अलोकाकाश में अवकाश स्वभाव नहीं देखा जाता जो आकाश द्रव्य का स्वभाव है ? अलोकाकाश में अवगाह पाने वालों का अभाव है, अलोकाकाश की अवकाश

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पुदगल

पुदगल को संख्यात, असंख्यात और अनंत प्रदेशी कहा है, पर अनंतानन्त क्यों नहीं कहा है ? अनंत का प्रमाण 3 प्रकार से है – परीतानन्त,

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मंगल आशीष

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