Category: 2010
असंयम
असंयम के साथ दुर्भग-नामकर्म हमेशा जुड़ा रहता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
लब्धि
पांचों लब्धियां तो सिर्फ संज्ञी जीवों के होती हैं । क्षयोपशम लब्धि सब जीवों के अनिवार्य है, विशुद्धि लब्धि सब जीवों के (नित्य निगोदियाओं के
सुकुमाल स्वामी
सुकुमाल स्वामी उपशम श्रेणी आरूढ़ हुये थे, मरण के बाद, सर्वार्थसिद्धी के देव हुये । क्षु. श्री गणेश वर्णी जी
निदान/लोकेषणा
निदान – अगले जन्म के लिये किया जाता है । लोकेषणा – इसी जन्म के लिये । क्षु. श्री जिनेन्द्र वर्णी जी (शांतिपथ प्रदर्शक)
भुज्यमान आयु
भोगी जाने वाली आयु । यह दो प्रकार की होती है । 1. निरूपक्रम/अनपवर्तनीय- प्रति समय समान निषेक निर्जरित होते हैं, इसे उदय कहते हैं,
सातिशय-पुण्य
सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान का फल चारित्र है । सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान सरागावस्था में अकषाय भाव से सातिशय पुण्य का बंध करता है । यह
केवली-समुदघात में समय
अधिकतर आचार्यों ने 8 समय बताया है ( 4 समय का विस्तार + 4 समय संकुचन )। पर कुछ आचार्यों ने 7 समय भी बताया
केवली-समुदघात में समय
अधिकतर आचार्यों ने 8 समय बताया है ( 4 समय का विस्तार + 4 समय संकुचन )। पर कुछ आचार्यों ने 7 समय भी बताया
द्वितियोपशम
प्रश्न :- द्वितियोपशम कितनी प्रकृतियों के उपशम से होता है ? उत्तर :- 7 प्रकृतियों के उपशम से । क्योंकि द्वितियोपशम-सम्यग्दर्शन, क्षयोपशमिक-सम्यग्दर्शन से ही होता
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