Category: 2010
अनिवृत्तिकरण
एक समय में नाना जीवों की अपेक्षा निवृत्ति या विभिन्नता जहां पर नहीं होती, वे परिणाम अनिवृत्तिकरण कहलाते हैं ।
कुलकर
12वें कुलकर तक जुगलिया पैदा हुये थे , 13 वें कुलकर ,प्रसन्नजित अकेले पैदा हुये थे , बाद में 14 वें कुलकर नाभिराय और मरूदेवी भी
उत्कृष्ट आयु
चतुर्थ काल में उत्कृष्ट आयु 1 कोटि पूर्व होती है, पर हुंड़ावसर्पिणी की वज़ह से आदिनाथ भगवान की 84 लाख पूर्व ही थी यह
सम्यग्दृष्टि के अल्पायु
अनुत्तर, अनुदिश तथा ग्रैवेयिक के देव मरण के बाद जघन्य ,आठ वर्ष + अंतर्मुहूर्त की आयु पाते हैं । इस दौरान कदलीघात नहीं होता ।
चैत्य-वृक्ष
चैत्य-वृक्ष वनस्पतिकाय नहीं, पृथ्वीकाय होते हैं । ये जीवों की उत्पत्ति और विनाश में भी निमित्त बनते हैं, ये जीव भी पृथ्वीकायिक ही होते हैं।
अवधिज्ञान
देवताओं के अवधिज्ञान की ऊपर की सीमा,उनके विमान की ध्वजदंड तक ही होती है, नीचे की दिशा में, सीमानुसार । भवप्रत्यय वालों के क्षेत्रानुगामी अवधिज्ञान
क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन
यदि बद्धायुष्क ने नरक आयु बांध ली हो तो सम्यग्दर्शन तो छूटेगा ही, वह जीव सातवें नरक तक जा सकता है । तैजस, क्षायोपशमिक-सम्यग्दॄष्टि के
नित्य/ध्रौव्य
नित्य का अर्थ ध्रुव है । द्रव्यों का कभी विनाश नहीं होता – यह नित्य है । अनादि पारिणामिक स्वभाव का उदय तथा व्यय नहीं
निगोद-स्थान
सिर्फ राजवार्तिक में इसका कथन आता है कि सातवीं पॄथ्वी के नीचे एक राजू मोटाई में “कलकल पृथ्वी” है, जिसमें निगोदिया जीव रहते हैं (
केवली
भगवान के केवलज्ञान होते समय शरीर परम औदारिक हो जाता है, तो क्या सारे निगोदिया जीव मर जाते हैं ? बारहवें गुणस्थान में पहुँचने पर
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