Category: 2018
सप्रतिष्ठित / अप्रतिष्ठित
प्रत्येक जीव जब सप्रतिष्ठित होता है तो अनंत जीव उसके आश्रित रहते हैं । अप्रतिष्ठित होने पर असंख्यात/संख्यात उस शरीर में रहते तो हैं पर
सासादन / मिश्र
सासादन-सम्यग्दृष्टि इसलिये कहा क्योंकि इसमें जीव सम्यग्दर्शन से ही आता है जबकि मिश्र में मिथ्यात्व से भी । चिंतन
द्रव्य / गुण / पर्याय
ये तीनों भिन्न हैं या अभिन्न ? अभिन्न, पर वर्णन की दृष्टि से भिन्न, जैसे सोने का पीलापन । पाठशाला
देव
मिथ्यादृष्टि, ग्रैवेयक जा सकता है पर सौधर्म/लोकपाल/प्रतींद्र नहीं बन सकता है । ऊपर वाले देव इनके देवर्द्धिदर्शन से सम्यग्दर्शन प्राप्त कर लेते हैं ।
स्वभाव / विभाव
जो अन्य के कारण भाव हों, वह विभाव । तो कर्मोदय के प्रभाव से सब विभाव हुआ न !!
श्वासोच्छ्वास
पंचेन्द्रिय की श्वसन क्रिया दिखती है, उसे “आण-प्राण” कहते हैं । जिनकी देखने में नहीं आती, उसे श्वासोच्छ्वास कहते हैं । आ. श्री विद्यासागर जी
केवल दर्शन / ज्ञान
केवल-ज्ञान बाह्य उद्दोत । केवल-दर्शन अंतरंग, उत्तर से दृष्टि हटाये बिना, दक्षिण में देखने का प्रयास, 1Sec.या कम दर्शनोपयोग काल है । मुख्तार जी व्य.कृ. – 2/828
उपाय / उपेय
उपाय = कारण – मोक्ष के लिये रत्नत्रय उपेय = कार्य (मोक्ष) । मुनि श्री सुधासागर जी
अनिवृत्तिकरण
अ = नहीं, निवृत्ति = भिन्नता, करण = परिणाम । एक समयावर्ती जीवों के एक से परिणाम, पर द्वितीय समय में अनंतगुणी विशुद्धता । श्री
कर्मों का विभाजन
आयु, वेदनीय और गोत्र प्रकृतियों के उत्तर भेदों में कर्मों का विभाजन नहीं होता, बाकी 5 प्रकृतियों में होता है । करूणानुयोग प्रवेशिका – 539
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