Category: 2015
दर्शन और मन:पर्यय
जैसे श्रुतज्ञान से पहले दर्शन नहीं होता, क्योंकि श्रुतज्ञान मति पूर्वक ही होता है और मति से पहले दर्शन होता ही है । ऐसे ही
क्षयोपशम
वीरांतराय, ज्ञानावरण तथा चारित्र मोहनीय का क्षयोपशम साथ साथ, एक दूसरे के पूरक/सापेक्ष हैं – द्रव्य संग्रह मुनि श्री निर्वेगसागर जी
कषाय – बंध/उदय
बंध तो 4 कषायों तक का एक साथ हो सकता है, पर उदय एक-एक का । मुनि श्री कुंथुसागर जी
भेदज्ञान
चौथे गुणस्थान में भेद- ज्ञान पर श्रद्धा, आगे के गुणस्थानों में भेद- ज्ञान घटित । आचार्य श्री विद्यासागर जी
शुभ/अशुभ
सत्ता में यदि शुभ वर्गणायें अधिक हैं तो वे अशुभ को अपने रूप में परिवर्तित कर लेंगी । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
जीव समास
संयम मार्गणा में असंयम तथा सम्यक्त्व में मिथ्यात्व क्यों लिया गया ? जीव बहुत बड़ी संख्या में इन श्रेणियों में भी पाये जाते हैं । संयम/सम्यक्त्व
उपशम भाव/चारित्र
कषायों की मंदता से 4 गुणस्थान से, उपशम चारित्र – 8-10 गुणस्थान में । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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