Category: 2010

संयमासंयम

संयमासंयम वालों में बहुभाग तिर्यंचों का होता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी (श्री आर्जव सागर जी )

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द्वितीयोपशम सम्यग्दर्शन

द्वितीयोपशम से उतरते समय यदि मिथ्यादर्शन उदय में आ जाये तो सीधे पहले गुणस्थान में आ जाते हैं, अनंतानुबंधी में बाद में जाते हैं ।

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अरिहंत भगवान

अरिहंत भगवान आहारक भी और अनाहारक भी होते हैं । जैसे Retirement से थोड़ा पहले अपने मकान की Maintenance बंद कर देते हैं, ऐसे ही

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सत्त्व

जिसकी सत्ता पाई जाती है, उसे सत्त्व कहते हैं । कर्मकांड़ गाथा : – 342

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उपशम

उदय, उदीरणा, उत्कर्षण, अपकर्षण, परप्रकृति-संक्रमण, स्थिति-कांड़क घात, अनुभाग-कांड़क घात के बिना ही कर्मों के सत्ता में रहने को उपशम कहते हैं । कर्मकांड़ गाथा :

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लेश्या

जो कर्मों से आत्मा को लिप्त करती है । सयोग-केवली, के शुक्ल लेश्या होती है क्योंकि उनके साता कर्म का बंध होता रहता है, हालांकि

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मध्यलोक

लोक की 14 राजू ऊंचाई में से 7 राजू अधोलोक, 7 राजू ऊर्धलोक, तो मध्यलोक कितना ? मध्यलोक 1 लाख चालीस योजन ऊंचा है ।

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केवली

समवसरण में जो केवली आते हैं वे तीर्थंकरों को नमोस्तु नहीं किया करते हैं, क्योंकि उनके मोहनीय कर्म समाप्त हो चुका होता है । जिज्ञासा

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मंगल आशीष

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